जंग ए आजादी का मतवाला- शाह मोहम्मद हसन उर्फ बिस्मिल अजीमाबादी
Jung-e-Azadi Ka Maatwala - Shah Mohammad Hassan alias Bismil Azimabadi
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#आजादी_का_अमृत_महोत्सव
20 जून यौमे वफात
*जंग ए आजादी का मतवाला- शाह मोहम्मद हसन उर्फ *बिस्मिल अजीमाबादी*--- ये गीत के रचयिता-— *'सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है*…'
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क्या आप उस इंक़लाबी शायर को जानते हैं, *जिसकी क़लम ने इस मुल्क को आज़ाद कराने में एक अहम रोल अदा किया*. क्या आप जानते हैं कि आज़ादी की लड़ाई के वक़्त जब *काज़ी अब्दुल गफ़्फ़ार की पत्रिका 'सबाह' में 1922 में उनकी ये ग़ज़ल छपी, तो अंग्रेज़ी हुकूमत तिलमिला गई. और ब्रिटिश हुकूमत ने इस पत्रिका के तमाम प्रकाशन को ज़ब्त कर लिया*.
*जब 1921 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में एक 20 साल के नौजवान ने अपनी इस ग़ज़ल को पढ़ा तो मानो हर किसी के दिल में मुल्क को आज़ाद कराने की तमन्ना जाग उठी*. ये ग़ज़ल तब भी हर क्रांतिकारी के ज़ुबान पर होती थी. और देश के आज़ाद होने के बाद भी जब भी सरकारें ज़ुल्म करती हैं, लोगों की ज़ुबान पर ही रहती है.
आप सोच रहे होंगे कि आख़िर ऐसी कौन सी ग़ज़ल है जिसकी भूमिका में मेरे शब्द कम पड़ रहे हैं. तो बता दूं कि उस ग़ज़ल की शुरूआत कुछ इस प्रकार होती है — *'सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है*…'
*इस ग़ज़ल के लिखने वाले बिस्मिल अज़ीमाबादी थे, जिनका असल नाम सैय्यद शाह मोहम्मद हसन* था.
वो 1901 में पटना से 30 किमी दूर हरदास बिगहा गांव में पैदा हुए थे. लेकिन एक-दो साल के अंदर ही अपने पिता सैय्यद शाह आले हसन की मौत के बाद वो अपने नाना के घर पटना सिटी आ गए, जिसे लोग उस समय अज़ीमबाद के नाम से जानते थे. जब उन्होंने शायरी शुरू की तो अपना नाम बिस्मिल अज़ीमाबादी रख लिया, और उसी नाम से उन्हें पूरी दुनिया जानती है.
अपनी क़लम से इंक़लाब करने वाला देश का सबसे अहम इंक़लाबी शायर यानी बिस्मिल अज़ीमाबादी आज ही के दिन 20 जून, 1978 को हमेशा के लिए अलविदा कह कर चला गया.
Afroz Alam Sahil
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Source- heritagetimes
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संकलन *अताउल्ला पठाण सर*
*टूनकी तालुका संग्रामपूर*
*बुलढाणा महाराष्ट्र*