जंग ए आझादी के अजीम शिपाही ,स्वतंत्रता सेनानी तथा काँग्रेस के पूर्व अध्यक्ष हकीम मोहम्मद अजमल खान
Azim Shipahi of Jang-e-Azadi, Freedom Fighter and Former President of Congress Hakim Mohammad Ajmal Khan
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#आजादी_का_अमृत_महोत्सव
12 फेब्रुवारी यौमे पैदायिश-
जंग ए आझादी के अजीम शिपाही ,स्वतंत्रता सेनानी तथा काँग्रेस के पूर्व अध्यक्ष हकीम मोहम्मद अजमल खान
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हिन्दुस्तान मे आयुर्वेद और तिब्ब ए युनानी की ज़िन्दा करने वाले अज़ीम शख़्स हकीम मोहम्मद अजमल ख़ान बैक वक़्त शायर भी, मुसन्निफ़ भी, मुजाहिद भी, हाफ़िज़ भी, आलिम भी, सियासतदां भी, प्रोफ़ेसर भी, सहाफ़ी भी. कहने को ये एक एैसी शख़्सियत हैं जिनके बारे मे कुछ कहना अफ़ताब को दिया दिखाने के मानिन्द है. आख़िर हो भी क्युं ना ? आख़िर हकीम साहेब एैसे शख़्सयत के मालिक जो थे।
पुरे बर्रे सग़ीर मे यूनानी तिब का डंका बजाने वाले हकीम अजमल ख़ान की पहचान महज़ एक यूनानी हकीम की नहीं थी. बल्कि वो लेक्चरर भी थे और आज़ादी के मतवाले भी. इंडियन नेशनल कांग्रेस के सदर भी बने. तहरीक अदम ताऊउन (असहयोग आंदोलन) में भी हिस्सा लिया और खिलाफ़त तहरीक के क़ाएद भी थे।
11 फ़रवरी 1868 को दिल्ली में पैदा हुए हकीम मुहम्मद अजमल ख़ान साहब ने सियासत की तो उसे उसकी उंचाई तक पहुचाया और वोह हिन्दुस्तान के वाहिद शख़्स बने जिन्हेने ऑल इंडिया नेशनल कांग्रेस, , जमियत उल्मा हिंद और ऑल इंडिया ख़िलाफ़त कमिटी के सदर का ओहदा संभाला यानी इन संस्थान के अध्यक्ष बने।
यूनानी तिब की देसी नुसख़े के तरक़्क़ी और फ़रोग़ में काफ़ी दिलचस्पी लेते हुए रिसर्च और प्रैकटिस का फ़रोग़ करने के वास्ते तीन अज़ीम एदारे की बुनयाद डाली, दिल्ली में सेंट्रल कॉलेज, हिन्दुस्तानी दवाख़ाना और तिब्बिया कॉलेज जिसे आज कल आयुर्वेदिक और यूनानी तिब्बिया कॉलेज के नाम से जाना जाता है; और इस तरह बर्रे सग़ीर में हिकमत और वैध को ख़्तम होने से बचाने में मदद की।
हकीम साहब को पढ़ने पढ़ाने का इतना शौक़ के पहले तो उन्होने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को फ़रोग़ देने मे काफ़ी दिलचस्पी ली; पर जब बात आई मुल्क और क़ौम की तो उन्होने अलीगढ़ मे ही जामिया मिल्लिया इस्लामिया बुनियाद रखी और 22 नवम्बर 1920 को जामिया के पहले अमीरे जामिया यानी चालंसर बने। और अपनी मौत तक इस पद पर बने रहे। उन्होंने अपने ज़िन्दगी का अाख़री दौर जामिया मिल्लिया इस्लामिया को दे दिया। 1925 में उन्हीं का फ़ैसला था कि जामिया को अलीगढ़ से दिल्ली ले जाया जाए। उन्होंने ही तिब्बिया कॉलेज के पास बीडनपुरा, करोलबाग में जामिया को बसाया। इनके बारे में मौलाना मौहम्मद अली जौहर ने कहा था कि तिब्बिया कॉलेज हकीम साहब की जवानी की औलाद है और जामिया मिल्लिया उनके बुढ़ापे की। और ये कहा जाता है कि वक्त के साथ-साथ बुढ़ापे की औलाद से बाप की मुहब्बत में इजाफ़ा होता जाता है। हकीम अजमल साहब ने जामिया के बारे में कहा था कि यहां जहाँ हमने एक ओर सच्चे मुसलमान पैदा करने की कोशिश की, वहीं दूसरी तरफ़ उनमे देश सेवा की भावना भी जागृत की। यहां इस बात का ख़्याल रखा गया है कि हिन्दू छात्र इस्लामियात को जानें तथा मुस्लिम छात्र हिन्दू रीति-रिवाज से नावाकिफ़ न रहें। 29 दिसम्बर 1927 को हकीम मुहम्मद अजमल ख़ान का इंतक़ाल हो गया, जिसके बाद उन्हें हज़रत रसूल नुमा के आहते में दफ़न कर दिया गया।
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Source Heritage Times.in
Md Umar Ashraf
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संकलन *अताउल्ला खा पठाण सर टूनकी बुलढाणा महाराष्ट्र*