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22 फेब्रुवारी यौमे वफात ! महान स्वतंत्रता सेनानी भारतरत्न मौलाना अबुल कलाम आजाद रहमतूल्लाह अलयही

22 february youme wafat! Great Freedom Fighter Bharat Ratna Maulana Abul Kalam Azad Rahmatullah Alaihi

22 फेब्रुवारी यौमे वफात ! महान स्वतंत्रता सेनानी भारतरत्न मौलाना अबुल कलाम आजाद रहमतूल्लाह अलयही
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22 फेब्रुवारी यौमे वफात

महान स्वतंत्रता सेनानी भारतरत्न मौलाना अबुल कलाम आजाद रहमतूल्लाह अलयही

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🟢मौलाना अबुल कलाम आज़ाद के बारे में वैसे तो बहुत कुछ है कहने को, लेकिन हम शुरुआत करेंगे उनके नाम से ही. कलाम साहब का असली नाम अबुल कलाम ग़ुलाम मुहियुद्दीन था जबकि उन्हें मौलाना आज़ाद के नाम से अधिक जाना जाता था. वे ना केवल आज़ादी की लड़ाई में अपना योगदान देते नजर आए बल्कि एक प्रकांड विद्वान और कवि भी रहे. उनके पास कई अन्य भाषाओ जैसे अरबिक, अंग्रेजी, उर्दू, हिंदी, पर्शियन, बंगाली का भी सम्पूर्ण ज्ञान रहा.

🟣अपने नाम के अनुरूप ही वे किसी भी मुद्दे पर बात करने में निपुण रहे. इन उपलब्धियों के साथ ही यह भी बताते चले कि मौलाना आज़ाद भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री भी रहे. इसके अलावा एक बड़ी उपलब्धि में भारत रत्न सम्मान भी शामिल है जोकि मौलाना आज़ाद को मरणोपरांत 1992 में मिला.

📙 जीवन :-

🟡मौलाना आज़ाद का जन्म 11 नवंबर 1888 को *मक्का* में हुआ था. उन्होंने एक शिक्षित मुस्लिम विद्वानों/मौलाना वंश में जन्म लिया. आज़ाद के पिता जहाँ मौलाना सैय्यद मुहम्मद खैरुद्दीन बिन अहमद अल हुसैनी

अफगान मूल के एक मुसलमान थे तो वही माता शेख आलिया बिन्त मोहम्मद अरब देश के शेख मोहम्मद की बेटी थी. खैरुद्दीन साहब कुछ साल मक्का में रहे. लेकिन 1890 में वे अपने परिवार के साथ फिर से कलकत्ता लौट आए.

📗 शिक्षा :-

🔵शिक्षा की शुरुआत में उनके पिता ही उनके अध्यापक रहे परंतु बाद में उन्हें प्रसिद्ध अध्यापक (उलेमा ए दिन)द्वारा घर पर ही शिक्षा की प्राप्ति हुई. आज़ाद ने सर्वप्रथम अरबी और फ़ारसी भाषा का ज्ञान लिया और इसके बाद उन्होंने दर्शनशास्त्र, रेखागणित, गणित और बीजगणित का रुख किया. इसके अलावा उन्होंने अंग्रेजी, दुनिया का इतिहास और राजनीति शास्त्र की पढाई खुद से ही की. उन्होंने अपने जीवन में कई अनमोल लेख भी लिखे. इसमें कई लेख और पवित्र कुरान की पुनः व्याख्या भी शामिल है.

🟣कई अहम सिद्धांतो का अध्ययन करते हुए उन्होंने अफगानिस्तान, इराक, मिश्र, सीरिया और तुर्की की यात्रा को भी अंजाम दिया. वे इराक में निर्वासित क्रांतिकारियों से भी मिले, जिनके द्वारा ईरान में संवैधानिक सरकार की स्थापना के लिए लड़ाई लड़ी जा रही थी. इसके साथ मिश्र में उनकी मुलाकात शेख मुहम्मद अब्दुह, सईद पाशा और अरब देश के अन्य क्रांतिकारी कार्यकर्ताओं से हुई. यहाँ से वे एक राष्ट्रवादी क्रांतिकारी बनने की रह पर निकल पड़े.

📕 क्रांति का दौर :-

🟢जैसे ही आज़ाद देश को लौटे उन्होंने बंगाल के दो प्रमुख क्रांतिकारियों अरविन्द घोष और श्री श्याम शुन्दर चक्रवर्ती से मुलाकात की. मुलाकात के साथ ही वे ब्रिटिश शासन के खिलाफ चल रहे क्रांतिकारी आंदोलन का एक हिस्सा बन गए. लेकिन उन्होंने यह पाया कि ये क्रांतिकारी गतिविधिया केवल बंगाल और बिहार तक ही सीमित थी.

🟡इसके बाद आज़ाद ने महज दो सालों के भीतर ही उत्तर भारत और बम्बई में गुप्त क्रांतिकारी केन्द्रो की संरचना को अंजाम दिया

🟣 वर्ष 1912 के दौरान आज़ाद ने मुसलमानों में दहक रही देशभक्ति की भावना को एक दिशा देते हुए एक साप्ताहिक उर्दू पत्रिका "अल हिलाल" की शुरुआत की. उनकी इस पत्रिका ने मोर्ले मिंटो सुधारों के परिणाम के अंतर्गत हिन्दू मुस्लिम एकता बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इसे उस समय में अल हिलाल गरम दल के विचारों को हवा देने का क्रांतिकारी मुखपत्र भी बताया गया. पत्रिका के इस बढ़ते कदम को देखते हुए वर्ष 1914 में सरकार ने अल हिलाल पर अलगाववादी विचारों को फ़ैलाने के जुर्म प्रतिबंध लगा दिया. लेकिन आज़ाद ने हार ना मानते हुए एक और साप्ताहिक पत्रिका "अल बलाघ" की शुरुआत कर दी.

🟡सरकार ने इसको लेकर भी एक अहम कदम उठाया और 1916 में इस पत्रिका पर प्रतिबंध लगा दिया. इसके साथ ही मौलाना आज़ाद को कोलकाता से निष्कासित कर दिया और रांची में नजरबन्द कर दिया गया. हालाँकि वर्ष 1920 के प्रथम विश्व युद्ध के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया. रिहाई के तुरन्त बाद ही उन्होंने फिर से अपने आंदोलन को एक नई दिशा देते हुए खिलाफत आंदोलन के माध्यम से मुस्लिम समुदाय को जगाया. इस आन्दोलन का प्रमुख उद्देश्य खलीफा को फिर से स्थापित करना. क्योकि ब्रिटिश सर्कार के द्वारा तुर्की पर कब्ज़ा जमा लिया गया था.

🟢उन्होंने ना केवल मुसलमानो के साथ मिलकर आंदोलन को दिशा दी बल्कि साथ ही राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी द्वारा शुरू किये गए असहयोग आंदोलन का भी भरपूर समर्थन किया. इसके अलावा वे वर्ष 1920 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का भी हिस्सा बन गए. इसके चलते उन्हें 1923 में दिल्ली में कांग्रेस के एक विशेष सत्र के लिए अध्यक्ष बनाया गया.

🔵उन्होंने गांधीजी के नमक सत्याग्रह में भी आगे बढ़कर अपना योगदान दिया और इसमें शामिल होने के कारण और नमक कानून के उल्लंघन के चलते 1930 में फिर से गिरफ्तार किया गया. डेढ साल मेरठ जेल में रहने के बाद वे फिर से आज़ाद हुए.

🟣1940 के दौरान वे रामगढ अधिवेसन में कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए और इस पद की गरिमा को 1946 तक बनाए रखा.

⚫लेकिन विभाजन के उस दौर ने उन्हें पूरी तरह तोड़ कर रख दिया क्योकि वे विभाजन के कट्टर विरोधी थे. उनका यह मानना था कि सभी प्रांतो को सविधान पर एक सार्वजनिक सुरक्षा के साथ ही अर्थव्यवस्था के साथ स्वतंत्रता देना चाहिए.

🟣पंडित जवाहरलाल नेहरू के प्रधानमंत्री बनने के बाद उनके मंत्रिमंडल में वर्ष 1947 से 1958 तक उन्होंने आज़ाद भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री के रूप में देश की सेवा की. 22 फरवरी 1958 को दिल का दौरा पड़ने के कारण राजधानी दिल्ली में उनका निधन हो गया.

📘 कुछ विशेष :-

🟢 1989 में शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए "मौलाना आजाद एजुकेशन फाउंडेशन" बनाया गया.

🟡 उनके जन्मदिवस पर भारतवर्ष में "नेशनल एजुकेशन डे" मनाया जाता है. उन्होंने 14 वर्ष से कम उम्र के सभी लोगों के लिए शिक्षा अनिवार्य की थी.

🟣मौलाना आजाद के तत्वाधान में ही देश के पहले IIT, IISC एवं विश्वविद्यालय अनुदान आयोग का निर्माण किया गया था.

📕 मौलाना आज़ाद के कुछ अनमोल बोल :-

🟢 दिल से दी गई शिक्षा से समाज में क्रांति लाई जा सकती है.

🟡 पेड़ तो बहुत से लोग लगाते हैं लेकिन कुछ लोगो को ही उसका फल मिल पता है.

🟣 हमें एक पल के लिए भी यह नहीं भूलना चाहिए कि हर एक व्यक्ति का यह जन्मसिद्ध अधिकार है कि उसे बुनियादी शिक्षा मिल, बिना इसके वह पूर्ण रूप से एक नागरिक के अधिकार का निर्वहन नहीं कर सकता.

🔴 गुलामी अत्यंत बुरी होता है चाहे इसका नाम कितना भी खुबसूरत क्यों न हो.

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लेखक- हितेश सोनगरा

News track live.com

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संकलन अताउल्ला पठाण सर

टूनकी तालुका संग्रामपूर

बुलढाणा महाराष्ट्र

9423338726

Updated : 22 Feb 2022 9:47 AM GMT
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